विजयादशमी दशहरा (विजया दशमी)
दशहरा भी हिंदुओं का मुख्य त्योहार है। दशहरा आश्विन मास की दसवीं तिथि को मनाया जाता है। इस मास में गुलाबी ठंड का आगमन हो जाता है। यह माह अत्यंत मनोरम होता है। इस माह में न तो ज्यादा गर्मी होती है और न ही ज्यादा सर्दी पड़ती है।
दशहरे से दस दिन पूर्व रामलीलाओं का आयोजन किया जाता है। दशहरे का महत्व रामलीलाओं के कारण बढ़ जाता है। भारत के प्रत्येक शहर एवं गांव में रामलीला का आयोजन होता है। दिल्ली में तो सभी कॉलोनियों में रामलीला होती हैं। किंतु दिल्ली गेट के करीब रामलीला मैदान की रामलीला सर्वाधिक प्रसिद्ध है। वहां पर दशहरे वाले दिन प्रधानमंत्री स्वयं रामलीला देखने आते हैं। उनके साथ दूसरे मंत्रीगण और अधिकारी भी होते हैं। उनके अतिरिक्त वहां हजारों लोगों की भीड़ होती है।
समाज के सभी वर्ग के लोग रामलीला देखने आते हैं। इसमें वे प्राचीन संस्कृति के साथ अपना जुड़ाव दर्शाते हैं।
दशहरे के दिन मनोरंजक मेले का आयोजन भी होता है। उस दिन रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतले प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। सच है कि ज्यादातर लोग तो इन्हीं पुतलों को देखने आते हैं। रामलीला के अतिरिक्त दशहरे के दिन आतिशबाजी दर्शनीय होती है जो दर्शकों का मन आकर्षित करती है। अनेक नगरों में तो आतिशबाजी की प्रतियोगिता भी होती है जिनमें आगरा नगर एक है। वहां पर कई नगरों से आतिशबाज आते हैं और जिसकी आतिशबाजी सर्वश्रेष्ठ होती है उसे पारितोषिक दिया जाता है। आतिशबाजी कार्यक्रम के बाद रामचंद्र जी रावण का संहार करते हैं। फिर बारी-बारी से पुतलों में अग्नि लगाई जाती है। प्रथमतः कुंभकर्ण का पुतला जलाया जाता है। उसके पश्चात् मेघनाद के पुतले में अग्नि लगाई जाती है और सबसे अंत में रावण के पुतले में अग्नि दी जाती है।
रावण का पुतला सबसे बड़ा बनता है। उसके दस सिर होते हैं, उसके दोनों हाथों में तलवार तथा ढाल होती हैं। रावण के पुतले को श्रीराम अग्निबाण से जलाते हैं। रावण के पुतले में अग्नि लगने के बाद सभी दर्शक अपने-अपने घरों को लौटने आरंभ हो जाते हैं।
भारतीय हिंदू समाज में दशहरे का दिन बहुत शुभ दिन माना जाता है। इस दिन श्रमिक लोग अपने-अपने काम के यंत्रों की पूजा करते हैं। वे लड्डू बांटकर प्रसन्नता प्रदर्शित करते हैं।
दशहरे का त्योहार असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की विजय भी कहा जाता है। इस दिन श्री राम ने बुराई के प्रतीक रावण का संहार किया था। अतः हमें भी अपनी बुराइयों को त्यागकर अच्छाइयों को स्वीकार करना चाहिए, तभी इस दिन की वास्तविक महिमा व गरिमा स्थापित हो सकती है।
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