हिंदी कहावतें / लोकोक्तियां और उनका अर्थ
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता - केला आदमी इतना बड़ा काम किस तरह करें?
अढ़ाई हाथ की ककड़ी नौ हाथ का बीज - बच्चा शरारत में माता-पिता से भी बढ़ गया।
अतिशय भक्ति चोर के लक्षण- ढोंगी आदमी चापलूस हुआ करता है।
अधजल गगरी छलकत जाय - अज्ञानी ही बढ़ चढ़कर ज्ञान की बातें करता है।
अंडा सिखाए बच्चे को कि चीं -चीं मत कर - छोटे का बड़े को नसीहत देना।
अंधा क्या चाहे दोनों आँखे - जरूर वाले की जरूरत पूरी होती हो तो और उसे चाहिए ही क्या?
अंधी पीसे, कुत्ता खाय - कमाए कोई उड़ाए कोई और ।
अंधा बाँटे रेवड़ी, फिरी फिरी अपनों को दे - अपनों ही का बराबर फायदा पहुंचाना।
अँधेर नगरी चौपट राजा, टके से भाजी, टके सेर खाजा - अत्याचारी और मूर्ख राजा के लिए प्रयुक्त।
अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना- नासमझ को समझने का व्यर्थ प्रयास।
अंधे के हाथ बटेर लगी- अपात्र को कोई बहुमूल्य चीज मिल जाना।
अंधों में काना राजा - मूर्खों के बीच कम पढ़ा लिखा सदैव आदर पाता है ।
अपनी ढाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना- सबसे अलग होकर कोई काम करना।
अपने-अपनी डफली अपना अपना राग- एकमत होकर काम न करना ।
अपनी करनी पार उतरनी - अपने ही कर्मों का फल पाना।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है- अपनी जगह डरपोक भी बहादुर होता है।
अपनी दही को खट्टा कौन कहता है?- अपनी वस्तु किसे नहीं अच्छी लगती?
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना - अपने मुंह अपनी ही बढाई करना।
अब पछताए हो तो क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत- पहले से सावधानी नहीं बढ़ती तो काम बिगड़ जाने के बाद पछताना व्यर्थ है।
अक्ल बड़ी या भैंस- अधिक नुकसान की चिंता न कर कम नुकसान पर दुखी होना।
अक्लमंद को इशारा बेवकूफ को तमाचा - बुद्धिमान तो इशारे से ही समझ कर काम करते हैं किंतु मूर्ख तमाचे खाकर ।
अस्सी की आमद चौरासी का खर्च - आमद से ज्यादा खर्च ।
आँसुओं से प्यास नहीं बुझती - रोने से दिल का अरमान पूरा नहीं होता।
आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास - करना था क्या और करने लगे क्या?
आग लगते झोपड़ा जो निकसे लाभ - जहां सब कुछ नष्ट हो रहा हो वहां जो थोड़ा बच जाए वही लाभ समझना चाहिए।
आगे कुआँ पीछे खाई - कार्य करने न करने दोनों में खराबी ।
आप भला जो जग भला- अच्छे के साथ दुनिया भी अच्छा ही बर्ताव करती है।
आम के आम गुठलियों के दाम - दुहरा लाभ ।
ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया- भाग्य की विचित्रता ।
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे - एक तो अपराध किया, वह माना नहीं उल्टे दूसरे को धमकता है।
उल्टे बांस पहाड़ चढ़ना उल्टे बांस बरेली को- उल्टा काम करना।
ऊँची दुकान फीका पकवान - प्रसिद्ध तो ज्यादा परंतु योग्यता कुछ नहीं।
ऊँट के मुंह में जीरा - बहुत थोड़ा।
ऊँट चढ़े पर पर कुत्ता काटे - भाग्य का खोटापन हर वक्त सताता है ।
ऊँट देखिए किस करवट बैठे - देखें परिणाम क्या होता है।
उधो का लेना ना माधो का देना - बिल्कुल निश्चिंत ।
उखल में दिया सर तो मुसलों का क्या डर - जब एक मुसीबत खुद खरीद ली है या एक मुश्किल काम में हाथ डाल दिया है तो अब रास्ते की तकलीफों से क्या डरना?
एक अनार सौ बीमार- वस्तु कम मांगे ज्यादा।
एक तीर दो निशाने- एक ही उपाय से दो कामों का होना।
एक तो करेला कड़वा दूसरे नीम चढ़ा - एक तो कोई व्यक्ति पहले से ही बुरा था अब उसे बुरी संगति भी मिल गई।
एक तो चोरी दूसरे सीना जोरी - एक तो अपराध किया दूसरे जबान लढाता है ।
एक पंथ दो काज - एक ही उपाय से दो काम ।
ओछे की प्रीत बालू की भीत - छोटे दिल वाले की दोस्ती रेट की दीवार की तरह कमजोर होती है।
एक हाथ से ताली नहीं बजती- दोनों पक्षों का अपराध होना।
ओस चाटे प्यास नहीं बुझती - थोड़ी चीज से ज्यादा चाहने वाले को तसल्ली नहीं मिलती ।
कभी नाव पर गाड़ी कभी गाड़ी पर ना - समय किसी का एक सा नहीं रहता।
कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली - कहां तुम्हारा घटिया दर्जा और कहां इतना बड़ा आदमी जिसकी बड़ाई कर रहे हो।
कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनवा जोड़ा - इधर-उधर की अनमोल बातें ।
कहीं बूढ़े तोता भी पढ़े हैं - पुरानी उम्र के आदमी नए काम सीख नहीं पाते ।
काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती - धोखे का व्यापार बार-बार नहीं ।
काबुल में क्या गधे नहीं होते?- अच्छे बुरे सभी जगह होते हैं।
का वर्षा जब कृषि सुखाने समय चूँकि पुनि का पछिताने- समय निकल जाने पर पछताना बेकार है।
कुत्ते की दुम फिर भी टेढ़ी की टेढ़ी - को संस्कारी व्यक्ति पर सिख का प्रभाव नहीं पड़ता।
कोयलों की दलाली में मुँह काला- बुरे काम में पड़ने का नतीजा बदनामी।
कौआ चला हंस की चाल- घटिया आदमी/ अनाड़ी आदमी का बड़ों की नकल करके नुकसान उठाना।
खग जाने खग ही की भाषा- जो जिसके साथ रहता है वह उसके विचारों से ही परिचित रहता है ।
खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है - आदमी को देखकर आदमी दंग सीखना है ।
खरी मजूरी चोखा काम- मजदूरी अच्छी तो काम भी अच्छा।
खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे - गुस्से वाला व्यक्ति दूसरों पर अपना गुस्सा निकालता है।
खेत खाए गदहा मार खाय जोलहा - अपराध किसी का दंड किसी को ।
खोटा सिक्का भी बुरे वक्त पर काम आता है- विपत्ति के समय निकम्मी चीज भी काम कर जाती है।
खोदा पहाड़ निकली चुहिया- परिश्रम बहुत अधिक फल बहुत थोड़ा ।
गुड़ खाए, गुलगुले से परहेज - दिखावटी परहेज ।
गुरु गुड चेला चीनी - चेले की योग्यता गुरु से बढ़ जाना।
गोद में बच्चा नगर में ढिंढोरा- पास की वस्तु की तलाश इधर-उधर।
घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध - कोई व्यक्ति चाहे कितना ही गुणवान क्यों ना हो अपने लोगों के बीच मान नहीं पता।
घर का भेदी लंका ढाये - घर के छिपे हुए भेद जाने वाला बहुत बर्बादी लाया करता है।
घर की मुर्गी दाल बराबर- घर की चीज को महत्व नहीं ।
चट मंगनी पट ब्याह - किसी काम का जल्दी संपन्न होना।
चमड़ी जाए तो जाए दमड़ी ना जाए- सट्टा सजा मिले तो मिले मगर दौलत हाथ से न जाए ।
चलती का नाम गाड़ी- जब तक आदमी के हाथ-पांव चलते हैं तब तक काम होते रहते हैं ।
कम प्यार होता है चाम नहीं - काम करने वालों की कद्र होती है सूरत की नहीं।
चार दिनों की चांदनी फिर अँधेरी रात- थोड़े दिनों की शानो शौकत ।
चिराग तले अँधेरा - गुणी के घर अगुणी ।
चोर का भाई जेबकतरा - ऐसा दुराचारी व्यक्ति जो किसी दोषी का पक्ष ले और उसे निर्दोष बताए ।
चोर की दाढ़ी में तिनका- अपराधी हमेशा सशंकित रहता है ।
चोर चोर मौसेरे भाई - एक ही पेशेवाले आदमी ।
चोर चोरी से जाए तुंबा फेरी से नहीं- आदत छोड़ देने पर भी कुछ ना कुछ प्रभाव शेष रह ही जाता है ।
छुछूंदर के सिर पर चमेली का तेल- को पत्र को उत्तम वस्तु मिलना ।
जल में रहकर मगर से बैर - साथ रहना हो तो बड़ों से मिलकर रहो।
पेड़ में बगान तहाँ रेड प्रधान - मूर्खों के बीच थोड़ा पढ़ा लिखा आदर पाता है ।
जल्दी काम शैतान का- जल्दबाजी में काम बिगड़ जाता है।
जाको राखे साईंयाँ मारी सकै न कोय - जिसकी रक्षा भगवान करे उसे कोई मार नहीं सकता ।
जान बची लाखों पाय - शुक्र है की जान बच गई।
जान हैँ तो जहान हैँ - प्राण रक्षा प्रथम कर्तव्य है ।
जितना ही गुड़ डालो, उतना ही मीठा- जितना धन खर्च करोगे उतनी ही अच्छी चीज मिलेगी ।
तेते पाँव पसारिए, जेती लंबी सौर - अपनी औकात देखकर ही खर्च करो।
जितने मुँह, उतनी ही बातें - अपनी अपनी समझ से हर कोई कुछ ना कुछ कह जाता है ।
जिसका खाए उसका गाए - उपकारी के प्रति कृतज्ञ होना ।
जिसकी बनरी वही नचावे - जिसका जो काम है वही उसे ठीक से कर सकता है।
जिसकी लाठी उसकी भैंस - जोर वाले का ही सब कुछ ।
जिसके पाँव न फटी बिवाई, वह क्या जान पीर पराई - जिनको खुद तकलीफ नहीं हुई वह दूसरे की तकलीफ क्या समझेगा?
जिसे पिया चाहे वही सुहागन - जिसको मलिक चाहे वह बुरा भी अच्छा ।
जैसा देश, वैसा भेस- जहां रहे वहीं के नियमानुसार ।
जैसी करनी, वैसी भरनी - अपने किए का फल पाना ।
जो गरजे सो बरसे नहीं- बहुत बातें बनाने वाला काम के लायक नहीं होता ।
जो जागे सो पावे, जो सोवे सो खावे- होशियार ही फायदा लेता है।
जो बोवोगे सो काटोगे - नेकी का फल नेक और बदी का बुरा।
झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला - अंततः सत्य की ही जीत होती है।
रहे झोपड़ी में, ख्वाब देखे महलों का - औकात बढ़कर सपने देखना।
ठंडा लोहा गरम लोहे को काटता हैँ - क्रोधी को नम्र शांत कर देता है।
डायन भी दस घर बख्स देती हैँ - अन्यायी भी पड़ोसी से हिल - मिलकर रहता है।
ढाक के तीन पात - परिणाम कुछ भी नहीं ।
ढ़ोल के अंदर पोल - दिखावा कुछ और गुण कुछ नहीं ।
तन सुखी तो मन सुखी - तंदुरुस्ती में ही स्वच्छ मन ।
तलवार का घाव भर जाता है, बात का नहीं भरता - कटु वचन बराबर याद रहते हैं ।
ताने घर के बाने घाट - संपन्न स्थिति ।
तू डाल -डाल, मैं पात-पात - तुम चालाक तो मैं भी चालाक।
थोथा चना बाजे घना - मूर्ख व्यक्ति शेखी बघारता है ।
काठ की हाँड़ी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई - नुकसान तो हुआ पर नीच व्यक्ति की असलियत तो पहचानी गई ।
दाना न घास, घोड़े तेरी आस - देना ना लेना मुफ्त में काम लेने के इरादे।
दीवार के भी कान होते हैँ - सावधानी से गुप्त बातें करें कोई सुन ना ले ।
दौलत चलती-फिरती छाँव है- दौलत अस्थिर रहती है ।
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का - कहीं ठौर ठिकाना नहीं।
नया नौ दिन, पुराना सौ दिन - नई चीज बहुत दिन नहीं चलती।
नाई की बारात में सभी ठाकुर- ही- ठाकुर - सभी खाने वाले ही काम करने वाला कोई नहीं।
नाच न जाने आँगन टेढ़ा - काम न आने पर बहन ढूंढना ।
नाचने लगे तो घूँघट कैसा - जब कोई काम करना ही है तो बुराई पर विचार कैसा?
नाम मेरा गाँव तेरा - कोई कमाए,कोई खाए ।
नेकी और पूछ -पूछ - भलाई करने के लिए किसी से क्या पूछना।
नौकरी रेड़ (अरंड ) की जड है- नौकरी की नींद कच्ची होती है।
नौकरी खाला जी का घर नहीं - नौकरी करना आसान काम नहीं।
नौ नकद न तेरह उधार - अधिक उधर से कम नकद ही अच्छे ।
नौ सौ चूहे खाके बिल्ली चली हज को - सारी उम्र पाप करके अंत में नेक बनना ।
बाप मरा अँधरिया में, बेटे का नाम पावर हाउस -बाप से बेटे की अधिक ठाट बात होना ।
मुँह में राम बगल में छुरी - मीठी मीठी बातें करके परोक्ष में हानि पहुंचाना ।
मन चंगा तो कठौती में गंगा - हृदय पवित्र रहने पर घर ही मंदिर ।
गए थे रोजा छुड़ाने नमाज गले पड़ी - सुख के बदले दु:ख ।
छोटा मुँह बड़ी बात - बढ़-चढ़कर बातें करना।
आँख का अंधा, नाम नयनसुख - गुण के प्रतिकूल प्रसिद्ध ।
आगे नाथ न पीछे पगहा - बेलौस व्यक्ति ।
अधज़ल गगरी हलकत जाए- ओछे व्यक्ति में ऐंठन होती है ।
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