Monday, September 30, 2024

हिंदी कहावतें हिन्दी लोकोक्तियाँ



 हिंदी कहावतें / लोकोक्तियां 

 अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता 

 अढ़ाई हाथ की ककड़ी नौ हाथ का बीज

 अतिशय भक्ति चोर  के लक्षण

अधजल गगरी छलकत जाय 

अंडा सिखाए बच्चे को कि चीं -चीं मत कर 

अंधा क्या चाहे दोनों आँखे

अंधी पीसे, कुत्ता खाय 

अंधा बाँटे रेवड़ी, फिरी फिरी अपनों को दे 

अँधेर  नगरी चौपट राजा, टके से भाजी, टके सेर खाजा

 अंधों के आगे रोना अपना दीदा खोना

 अंधे के हाथ बटेर लगी

 अंधों में काना राजा 

 अपनी ढाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना

 अपने-अपनी डफली अपना अपना राग 

 अपनी करनी पार उतरनी 

 अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है

 अपनी दही को खट्टा कौन कहता है?

 अपने मुँह  मियाँ मिट्ठू बनना 

 अब पछताए हो तो क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत

 अशर्फीयों की लूट लूट कोयले पर छाप

 अक्ल बड़ी या भैंस

 अक्लमंद को इशारा बेवकूफ को तमाचा 

 अस्सी की आमद चौरासी का खर्च 

 आँसुओं से प्यास नहीं बुझती 

 आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास 

 आग लगते झोपड़ा जो निकसे लाभ 

 आगे कुआँ पीछे खाई 

 आप भला जो जग भला

 आम के आम गुठलियों के दाम 

 ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया

 उत्तम खेती मध्यम बान नीच चाकरी भीख निदान 

 उल्टा चोर कोतवाल को डांटे 

 उल्टे बांस पहाड़ चढ़ना उल्टे बांस बरेली को

 ऊँची  दुकान फीका पकवान 

ऊँट के मुंह में जीरा  

ऊँट चढ़े पर  पर कुत्ता काटे 

ऊँट देखिए किस करवट बैठे 

 उधो का लेना ना माधो का देना 

 उथल में दिया सर तो मुसलों का क्या डर 

 एक अनार सौ बीमार

 एक तीर दो निशाने

 एक तो करेला कड़वा दूसरे नीम चढ़ा  

 एक तो चोरी दूसरे सीना जोरी 

 एक पंथ दो काज 

 ओछे की प्रीत बालू की भीत 

 एक हाथ से ताली नहीं बजती

 ओस चाटे प्यास नहीं बुझती 

 कभी नाव पर गाड़ी कभी गाड़ी पर ना 

 कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली 

 कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनवा जोड़ा 

 कहीं बूढ़े तोता भी पढ़े हैं 

 काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती 

 काबुल में क्या गधे नहीं होते?

 का वर्षा जब कृषि सुखाने समय चूँकि पुनि का पछिताने 

 कुत्ते की दुम फिर भी टेढ़ी की टेढ़ी 

 कोयलों की दलाली में मुँह काला

 कौआ चला हंस की चाल

 खग जाने खग ही की भाषा

 खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है 

 खरी मजूरी चोखा काम

 खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे 

 खेत खाए गदहा मार खाय जोलहा 

 खोटा सिक्का भी बुरे वक्त पर काम आता है

 खोदा पहाड़ निकली चुहिया

 गुड़ खाए, गुलगुले से परहेज

 गुरु गुड चेला चीनी 

 गोद में बच्चा नगर में ढिंढोरा

 घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध 

 घर का भेदी लंका ढाये

 घर की मुर्गी दाल बराबर

 चट मंगनी पट ब्याह 

 चमड़ी जाए तो जाए दमड़ी ना जाए

 चलती का नाम गाड़ी

 कम प्यार होता है चाम नहीं 

 चार दिनों की चांदनी फिर अँधेरी  रात

 चिराग तले अँधेरा 

 चोर का भाई जेबकतरा 

 चोर की दाढ़ी में तिनका

 चोर चोर मौसेरे भाई 

 चोर चोरी से जाए तुंबा फेरी से नहीं

 छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल

 जल में रहकर मगर से बैर 

 पेड़ में बगान तहाँ रेड प्रधान 

 जल्दी काम शैतान का

 जाको  राखे साईंयाँ मारी सकै न कोय 

जान बची लाखों पाय 

जान हैँ तो जहान हैँ 

जितना ही गुड़ डालो, उतना ही मीठा

तेते पाँव पसारिए, जेती लंबी सौर 

जितने मुँह, उतनी ही बातें 

जिसका खाए उसका गाए 

जिसकी बनरी वही नचावे 

जिसकी लाठी उसकी भैंस 

जिसके पाँव न फटी बिवाई, वह क्या जान पीर पराई 

जिसे पिया चाहे वही सुहागन 

जैसा देश, वैसा भेस

जैसी करनी, वैसी भरनी 

जो गरजे सो बरसे नहीं

जो जागे सो पावे, जो सोवे सो खावे 

जो बोवोगे सो काटोगे 

झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला 

रहे झोपड़ी में, ख्वाब देखे महलों का 

ठंडा लोहा गरम लोहे को काटता हैँ 

डायन भी दस घर बख्स देती हैँ 

ढाक के तीन पात 

ढ़ोल के अंदर पोल 

तन सुखी तो मन सुखी 

तलवार का घाव भर जाता है, बात का नहीं भरता 

ताने घर के बाने घाट 

तू डाल -डाल, मैं पात-पात 

थोथा चना बाजे घना 

काठ की हाँड़ी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई 

दाना न घास, घोड़े तेरी आस 

दीवार के भी कान होते हैँ 

दौलत चलती-फिरती छाँव है

धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का 

नया नौ दिन, पुराना सौ दिन 

नाई की बारात में सभी ठाकुर- ही- ठाकुर 

नाच न जाने आँगन टेढ़ा 

नाचने लगे तो घूँघट कैसा 

नाम मेरा गाँव तेरा 

नेकी और पूछ -पूछ 

नौकरी रेड़ (अरंड ) की जड है 

नौकरी खाला जी का घर नहीं 

नौ नकद न तेरह उधार 

नौ सौ चूहे खाके बिल्ली चली हज को 

बाप मरा अँधरिया में, बेटे का नाम पावर हाउस 

मुँह में राम बगल में छुरी 

मन चंगा तो कठौती में गंगा 

गए थे रोजा छुड़ाने नमाज गले पड़ी 

छोटा मुँह बड़ी बात 

आँख का अंधा, नाम नयनसुख 

आगे नाथ न पीछे पगहा 

अधज़ल गगरी हलकत जाए









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