महंगाईः एक अभिशाप
मूल्य वृद्धि आज एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या है, प्रत्येक देश का नागरिक इससे संत्रस्त है, क्योंकि वह अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं कर पा रहा है।
इस लगातार मूल्य वृद्धि और महंगाई ने आम भारतीय को भी अत्यंत परेशान कर रखा है। दूध, दही, अनाज व दाल भी इतनी महंगी हो गई है कि व्यक्ति संतुलित भोजन कर पाने भी समर्थ नहीं हो पाता। सरकार भी महंगाई पर अंकुश लगा पाने में नाकाम साबित हुई है। केन्द्र तथा राज्य कर्मचारियों को प्रति छमाही में महंगाई भत्ता प्रदान कर दिया जाता है, किंतु अन्य लोगों की आय में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हो पाती। यही कारण है कि गरीब और गरीब होता जा रहा है। माता-पिता दिन-रात परिश्रम करके भी बच्चों को अच्छा भोजन व शिक्षा प्रदान नहीं कर पाते हैं। इस कारण उनमें भी निराशाएं घर कर जाती हैं।
महंगाई के इस भयावह सीमा तक बढ़ जाने के अनेक कारण हैं। प्रायः जब कोई देश अपने नव निर्माण में लगा होता है, तब कुछ सीमा तक दाम बढ़ते ही हैं। जीना महंगा और कठिन हो जाता है। उत्पादन और मांग के सिद्धांत के अनुसार जब मांग करने वाले अधिक होते हैं और उनका उत्पादन कम होता है, तब भी मूल्य वृद्धि होती है। इसी प्रकार अबाध दर से जनसंख्या का बढ़ते जाना व उसकी तुलना में उत्पादन व संसाधनों का नहीं बढ़ पाना भी महंगाई बढ़ने का मजबूत कारण है। भारत में महंगाई बढ़ने का मजबूत कारण जनसंख्या वृद्धि ही है। इसके अतिरिक्त जब देश की राष्ट्रीय आय द्वारा जन कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार होता है, तब भी महंगाई बढ़ती है। दुर्भाग्य से देश में लाखों करोड़ों के भ्रष्टाचार हुए हैं। इस कारण आय प्राप्त करने के लिए सरकार को नए कर लगाने पड़े हैं। इससे महंगाई को बल प्राप्त होता है। देश का दुर्भाग्य ही है कि भ्रष्टाचार ने देश में मजबूत जड़ें जमा ली हैं। इसे आप क्या कहेंगे कि कार्य करवाने के एवज में रिश्वत देना शिष्टाचार बन गया है। राजनीति का स्तर भी गिरता जा रहा है। इस कारण महंगाई पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा। भारतीय राजनीतिज्ञ भी महंगाई की समस्या के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार हैं। सत्ता की अदम्य लालसा के कारण वे नैतिक मूल्यों का ध्यान नहीं रखते हैं और अपने चहेतों को लाभ देने के लिए पद का दुरुपयोग करते हैं। देश में विदेशी निवेश बढ़ रहा है, इस कारण स्थानीय उद्योग-धंधे चौपट हो रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह रोजगार के साधनों में वृद्धि करे। जबकि देखा यह जा रहा है कि सरकार रोजगार के साधनों को कम रही है। राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में महंगाई फल-फूल रही है। भारतीय प्रजा को चाहिए कि वह अच्छे लोगों को संसद में भेजे, जो भ्रष्टाचार न करें। पार्टी को वोट न देकर व्यक्ति के चरित्रवान होने को वोट दिया जाना चाहिए। राजनेताओं के घोटालों ने देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करके रख दिया है।
देश की प्रजा का दोष यही है कि वह संस्कारवान लोगों को संसद में नहीं भेजती है। इस कारण भ्रष्ट राजनेता देश के आर्थिक संसाधनों के साथ मनचाहा भ्रष्टाचार करते हैं। अतः परिवर्तन आवश्यक है। यह जागरूक जनता ही ला सकती है। बढ़ती महंगाई के रोग का इलाज जनता के हाथ में ही है। साहस और सतर्कता से काम लेकर भ्रष्ट व्यवस्था को उखाड़ना है। इसके बिना महंगाई से मुक्ति संभव नहीं। अतः उचित नेतृत्व का चयन करके और उन पर दबाव बनाए रखकर ही महंगाई से मुक्त हुआ जा सकता है।
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